Friday, January 1, 2021

कई सदाबहार गीत रचने वाले संगीतकार N Dutta की बायोपिक की तैयारी

 

-दिनेश ठाकुर

संगीतकार सुरीली तबीयत के इंसान होते हैं। अपनी धुन में रहने वाले। हर बात सुर में कहने वाले। हिन्दी सिनेमा के जिस सुरीले इतिहास पर हम धन्य हुए जाते हैं, जाने कितने संगीतकारों के खून-पसीने से रचा गया है। एक से बढ़कर एक कमाल के संगीतकार। लेकिन पर्दे के पीछे के तकनीशियनों की तरह ज्यादातर संगीतकारों के हिस्से में वैसी सुर्खियां नहीं आईं, जो पर्दे पर चमकने वाले अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को नसीब हुईं। एन. दत्ता (दत्ता नाइक) ऐसे ही संगीतकार थे। जमाना उनकी जादुई धुनों वाले 'मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी' (चंद्रकांता), 'धड़कने लगे दिल के तारों की दुनिया' (धूल का फूल), 'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा' (भाई बहन), 'औरत ने जन्म दिया मर्दों को' (साधना), 'पोंछ कर अश्क अपनी आंखों से, मुस्कुराओ तो कोई बात बने' (नया रास्ता) और 'भूल सकता है भला कौन ये प्यारी आंखें' (धर्मपुत्र) जैसे सदाबहार गीतों को आज भी गुनगुना रहा है। गुनगुनाने वालों में बहुत कम होंगे, जो एन. दत्ता के बारे में जानते होंगे। दुनिया इस लाजवाब संगीतकार के बारे में जाने, इस इरादे से उनकी बायोपिक की तैयारी चल रही है। हिन्दी सिनेमा के किसी संगीतकार पर यह पहली बायोपिक होगी।

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साहिर लुधियानवी से थी दोस्ती
साहिर लुधियानवी से दोस्ती और राज खोसला, बी.आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, ख्वाजा अहमद अब्बास आदि बड़े फिल्मकारों की फिल्मों की सुरीली सजावट के बावजूद कामयाबी एन. दत्ता से कटी-कटी रही। उनके हिस्से में 'बहादुर डाकू', 'अलबेला मस्ताना' और 'मिस तूफान मेल' जैसी बी ग्रेड की फिल्में ज्यादा आईं। संजीव कुमार की 'चेहरे पे चेहरा' (1981) में उनकी धुन वाला गीत है, 'आज सोचा है ख्यालों में बुलाकर तुमको,प्यार के नाम पे थोड़ी-सी शिकायत कर लें।' इस फिल्म के बाद एन.दत्ता कोई शिकायत किए बगैर अपनी इज्जत-आबरू लेकर फिल्मी दुनिया से दूर हो गए। लम्बी गुमनामी के बाद 1987 में वे दुनिया से रुखसत हुए।

किस्मत की हवा कभी नरम, कभी गरम
फिल्मों में एन. दत्ता की तरह कई और संगीतकारों के लिए 'किस्मत की हवा कभी नरम, कभी गरम' रही। एक दौर में वक्त इन्हें उड़ती कालीन पर बैठाकर एक लम्हे से दूसरे लम्हे में ले गया। फिर वह दौर आया, जब इन्हें वक्त भारी पत्थर की तरह ढोना पड़ा। जमाने में होकर भी जमाना इन्हें भूल गया। अनिल विस्वास, गुलाम हैदर, जयदेव, खय्याम, वसंत देसाई, रवि, सलिल चौधरी आदि के साथ यही हुआ। नौशाद का नाम कभी फिल्मों की कामयाबी की गारंटी माना जाता था। आखिरी दौर में उनकी प्रतिभा को 'गुड्डू' और 'तेरी पायल मेरे गीत' जैसी कमजोर फिल्मों में खर्च किया गया।

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प्रीसले, माइकल जैक्सन और मैडोना की भी बायोपिक
इत्तफाक है कि एन. दत्ता की बायोपिक ऐसे दौर में बन रही है, जब हॉलीवुड भी अपने कुछ बड़े संगीत-सितारों की बायोपिक तैयार कर रहा है। बैज लुहरमैन के निर्देशन में रॉक एंड रॉल के बादशाह एल्विस प्रीसले के देहांत के 44 साल बाद उनकी बायोपिक बनाई जा रही है। रॉक स्टार माइकल जैक्सन और पॉप स्टार मैडोना के अलावा सलीन डियोन की भी बायोपिक तैयार हो रही है, जिनकी आवाज वाले 'टाइटैनिक' के गीतों (माय हार्ट विल गो ऑन, एवरी नाइट इन माय ड्रीम्स) की धूम आज भी बरकरार है।



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