-दिनेश ठाकुर
शायरी के कुछ आलोचक कहते हैं कि दुनिया में जितने विषय हैं, सब शायरी में कवर किए जा चुके हैं। अब शायरों के पास कहने के लिए कोई नई बात नहीं है। फिर भी दिल छूने वाली गजलें- नज्में रची जा रही हैं। इनमें नई बात पैदा की जा रही है। नई बात के लिए जरूरी नहीं कि विषय भी नया हो। सैफुद्दीन सैफ का मार्के का शेर है- 'सैफ अंदाजे-बयां बात बदल देता है/ वर्ना दुनिया में कोई बात नई बात नहीं।' शायरी ही नहीं, कला के हर क्षेत्र में 'अंदाजे-बयां' (बयान करने का अंदाज) अहम होता है। जापानी फिल्मकार अकीरा कुरोसावा की 'सेवेन समुराई' की कहानी नरेंद्र बेदी सुनाते हैं तो 'खोटे सिक्के' बनती है। यही कहानी रमेश सिप्पी सुनाते हैं तो 'शोले' बन जाती है। नए फिल्मकार बग्स भार्गव कृष्णा ( Bugs Bhargava Krishna ) की 'नेल पॉलिश' ( Nail Polish Movie ) देखने के बाद कहा जा सकता है कि वे अंदाजे-बयां की अहमियत से वाकिफ हैं। अखबारी सुर्खियों जैसी घटनाओं को उन्होंने इस अंदाज में पर्दे पर उतारा कि फिल्म में नई बात पैदा हो गई।
हत्याएं, मुकदमा और अंतर्विरोध
'नेल पॉलिश' साइकोलॉजिकल थ्रिलर है। आम ढर्रे के फामूर्लों से हटकर यह फिल्म एक इंसान के दिमाग की तहों को टटोलती है। ऐसा इंसान, जो प्रेम और नफरत के बीच झूलते हुए अंदर-बाहर के माहौल से जूझ रहा है। मुसीबतों ने उसकी घेराबंदी कर रखी है। उसे किसी भी कीमत पर अपना वजूद बचाना है। फिल्म की ज्यादातर घटनाएं अदालत में घूमती हैं। रिटायर्ड फौजी वीर सिंह (मानव कौल) ( Manav Kaul ) पर दो बच्चों के देह शोषण और हत्या का मुकदमा चल रहा है। तमाम सबूत उसके खिलाफ हैं। बचाव पक्ष का वकील (अर्जुन रामपाल) ( Arjun Rampal ) उसे बेकसूर साबित करने में जुटा है। वीर सिंह के दिमाग में अलग उथल-पुथल चल रही है। अचानक उसके हाव-भाव जनाना हो जाते हैं। वह यह कहकर जज (रजित कपूर) को भी उलझा देता है कि वह वीर सिंह नहीं, चारू रैना नाम की युवती है। हद यह कि अदालत के आदेश पर इस नाम की युवती का पति भी प्रकट हो जाता है। क्या यह वीर सिंह की मुकदमे से बचने की चाल है? या वाकई वह दोहरे किरदार जी रहा है?
शायद दूसरे भाग में खुलेगा सस्पेंस
इन सवालों के जवाब क्लाइमैक्स के बाद भी नहीं मिलते। यही 'नेल पॉलिश' का एक बड़ा झटका है। या तो बग्स भार्गव कृष्णा ने अति बुद्धिजीवी दर्शकों की समझ का आदर करते हुए इन सवालों को अनसुलझा छोड़ दिया या 'कटप्पा को किसने मारा?' (बाहुबली) की तर्ज पर उनका इरादा भी फिल्म के दूसरे भाग में जवाब पेश करने का है। 'बाहुबली' के साथ मामला दूसरा था। वहां कहानी गौण थी, दर्शकों को लुभाने वाले दूसरे तामझाम ज्यादा थे। 'नेल पॉलिश' में कहानी को जिस सूझबूझ से फिल्माया गया, उसे देखते हुए तकाजा यह था कि इसे किसी तर्कसंगत अंजाम तक पहुंचाया जाता।
मधु का किरदार भी पहेली जैसा
फिल्म में जज की बीवी (मधु) का किरदार भी पहेली जैसा है। वह हमेशा शराब के नशे में क्यों रहती है और पति को ताने क्यों मारती रहती है, इसकी वजह आखिर तक पता नहीं चलती। बहरहाल, आखिरी हिस्से में अधूरी लगने वाली इस फिल्म में क्लाइमैक्स से पहले तक घटनाएं तेजी से घूमती हैं। गैर-जरूरी नाच-गानों में उलझने के बजाय यह अपनी पटरी पर दौड़ती है। अच्छी सस्पेंस फिल्म की तरह 'आगे क्या होगा' का रोमांच बरकरार रहता है। सभी कलाकारों का काम अच्छा है, लेकिन यह पूरी तरह से मानव कौल की फिल्म है। पहले सीधे-सादे कोच, फिर दो हत्याओं के अभियुक्त और बाद में खुद को युवती समझने वाले किरदार में उन्होंने जान डाल दी है। यह फिल्म देखने वाले उनकी अगली फिल्म का इंतजार जरूर करेंगे।
० फिल्म : नेल पॉलिश
० रेटिंग 3.5/5
० अवधि : 2.8 घंटे
० लेखन-निर्देशन : बग्स भार्गव कृष्णा
० फोटोग्राफी : दीप मेटकर
० संगीत : संजय वंडरेकर
० कलाकार : मानव कौल, अर्जुन रामपाल, रजित कपूर, मधु, समरीन कौर, आनंद तिवारी, समीर धर्माधिकारी, नेहा हिंगे, पंकज सिंह आदि।
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