Thursday, May 28, 2020

Crisil ने बताया, भारत में बीती तीन मंदियों से कैसे अलग है मौजूदा मंदी

नई दिल्ली। भारत एक कृषि प्रधान ( Agriculture Based ) देश रहा है। इसी की वजह से देश की इकोनॉमी ( Indian Economy ) खड़ी हुई। आजादी के बाद और उदारीकरण ( Globalisation ) से पहले देश को तीन खतरनाक मंदियों के दौर से गुजरना पड़ा था। जिसकी वजह सिर्फ मानसून ( Mansoon ) कम होने के कारण एग्रीकल्चर सेक्टर ( Agriculture Sector ) के ना पनप पाना था। वहीं उदारीकरण के बाद यह पहली ऐसी मंदी है जिसकी वजह से एग्रीकल्चर सेक्टर नहीं है। खास बात तो ये है कि इस मंदी का असर एग्रीकल्चर सेक्टर में देखने को नहीं मिला है। देश में रिकॉर्ड उत्पादन देखने को मिला है। वास्तव में यह तमाम जानकारी क्रिसिल की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है। आइए आपको भी बताते हैं कि क्रिसिल ( Crisil Report ) की ओर से अपनी रिपोर्ट में क्या कहा गया है।

एग्रीकल्चर बेस्ड थी देश की इकोनॉमी
क्रिसिल की ओर से अपनी रिपोर्ट में मौजूदा मंदी से पहले देश की तीन मंदियों के काल और समय का जिक्र किया है उस समय देश की इकोनॉमी एग्रीकल्चर पर बेस्ड थी। क्रिसिल के अनुसार इससे पहले पिछले 69 सालों में देश में केवल तीन बार 1958, 1966 और 1980 में मंदी आई थी। यह तीनों मंदियां तीन अलग-अलग दौर की हैं। पहला दौर नेहरू काल का,ख् दूसरा दौर शास्त्री काल और तीसरा इंदिरा काल था। तीनों ही काल ही महत्ता अलग-अलग है। शास्त्री ने तो देश में जय किसान और जय जवाब का नारा दिया था। तीनों ही कालों में देश की जीडीपी में एग्रीकल्चर की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा थी।

आखिर क्यों पड़ी थी पहली तीन मंदी
हरित क्रांति से पहले देश का एग्रीकल्चर मानसून पर काफी डिपेंड था। यह तीनों ही मंदी हरित क्रांति से पहले की ओर ही संकेत कर रही हैं। क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार उन तीन सालों में मंदी आने का अहम कारण था मानसून का झटका। इस वजह से एग्रीकल्चर सेक्टर पर काफी बुरा असर पड़ा था। एग्रीकल्चर बेस्ड इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ। जानकारों की मानें तो पहले ही इकोनॉमी में यही फर्क है। पहले इंडियन इकोनॉमी में एग्रीकल्चर सेक्टर की बड़ी हिस्सेदारी थी। जो अब काफी कम हो गई है।

मौजूदा मंदी पर नहीं एग्रीकल्चर इंपैक्ट
क्रिसिल रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा मंदी यानी चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ अलग है, क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा। यह झटके को कुछ कम जरूर कर सकता है। क्रिसिल ने कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि गैर-कृषि जीडीपी में छह फीसदी की गिरावट दर्ज देखने को मिलेगी। वहीं एग्रीकल्चर सेक्टर से कुछ राहत मिलने की उम्मीद जरूर है और इसमें 2.5 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है।

पहली तिमाही में इकोनॉमी के गिरने की संभावना
क्रिसिल रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, कोविड-19 महामारी की वजह से वित्तीय वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी की कमी आई है। वहीं इसकी पहली तिमाही में 25 फीसदी की बड़ी गिरावट की संभावना है। क्रिसिल का मानना है कि वास्तविक आधार पर करीब 10 फीसदी जीडीपी स्थायी तौर पर नष्ट हो सकता है। ऐसे में महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी गई है, उसके मुताबिक इसे ठीक होने में कम से कम तीन साल का वक्त लग जाएगा।

नॉन एग्रीकल्चर सेक्टर में गिरावट
क्रिसिल ने अपने पहले के अनुमान को संशोधित करते हुए और भी नीचे कर दिया है। एजेंसी ने कहा, इससे पहले 28 अप्रैल को हमने वृद्धि दर के अनुमान को 3.5 प्रतिशत से कम कर 1.8 प्रतिशत किया था। उसके बाद से स्थिति और खराब हुई है। कोरोना वायरस लॉकडाउनके कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई है। न केवल गैर कृषि कार्यों, बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका है। इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा। रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्2या में लोग काम करते हैं।

यहां भी बुरे हालात
उन राज्यों में भी आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं, जहां कोविड-19 के मामले ज्यादा हैं। मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। अप्रैल में निर्यात में 60.3 फीसदी की गिरावट आई और नए दूरसंचार ग्राहकों की संख्या 35 फीसदी कम हुई है। इतना ही नहीं रेल के जरिए माल ढुलाई में सालाना आधार पर 35 प्रतिशत की गिरावट आई है।



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