-दिनेश ठाकुर
किसी जमाने में 'क्वेस्चन बॉक्स' अंग्रेजी की 'फिल्मफेयर' का खासा लोकप्रिय कॉलम था। इसमें आइ.एस. जौहर अपनी जानी-पहचानी व्यंग्य-विनोद शैली में पाठकों के सवालों के चुटीले और चुभते हुए जवाब देते थे। कुछ बानगी पेश हैं।
सवाल : आशावादी किसे कहते हैं?
जवाब : जो आपसे सिगरेट मांगने से पहले ही माचिस जला ले।
सवाल : अच्छा नेता कैसा होता है?
जवाब : जो चुनाव से पहले आपसे हाथ मिलाए और चुनाव के बाद आपका भरोसा हिलाए।
सवाल : हमारी फिल्मों में पुलिस सबसे आखिर में क्यों आती है?
जवाब : पुलिस उनकी मदद करती है, जो अपनी मदद खुद करते हैं।
सवाल : लखनऊ में गाली के आगे 'आप' क्यों लगाते हैं?
जवाब : इज्जत बढ़ाकर गिराने के लिए।
सवाल : क्या आप जानते हैं, घोड़ा 26 तरह से 'आइ लव यू' बोल सकता है?
जवाब : क्या इसमें उसकी 'किक' भी शामिल है?
इसी तरह की हाजिर जवाबी आइ.एस. जौहर फिल्मों में पेश करते थे। उनकी कॉमेडी समकालीन हास्य अभिनेताओं से जुदा थी। हास्य पैदा करने के लिए न चेहरे की नसों को खींचते थे, न आंखों का आकार बढ़ाते थे और न दोहरे मतलब वाले संवादों का सहारा लेते थे। उनका हास्य सहजता की उपज था, जिसमें आंसुओं का खारापन और मिर्ची का तीखापन एक साथ महसूस होता था। डबल एमए (राजनीति, अर्थशास्त्र) और एलएलबी की डिग्री लेकर फिल्मों में आए थे। उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि समाज पर सबसे ज्यादा असर डालने वाली हिन्दी फिल्मों में कम पढ़े-लिखे लोगों का सिक्का ज्यादा चलता है। हद से ज्यादा मुंहफट थे। इसलिए मायानगरी में उन्हें चाहने वालों के मुकाबले उनसे चिढऩे वाले ज्यादा थे। निदा फाजली का शेर है, 'उसके दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा/ वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा।'
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कभी सहायक थे यश चोपड़ा
आइ.एस. जौहर कई जौहर (खूबियों) से लैस थे। अभिनेता के अलावा लेखक, निर्माता-निर्देशक के तौर पर भी उनकी शोहरत रही। यश चोपड़ा कभी उनके सहायक हुआ करते थे। निर्माता यश जौहर (करण जौहर के पिता) उनके छोटे भाई थे। सत्तर के दशक में अपनी फिल्मों में इमरजेंसी और नसबंदी (इस नाम से उन्होंने फिल्म भी बनाई) के मुखर विरोध के कारण वह तत्कालीन कांग्रेस सरकार के निशाने पर रहे। उनकी फिल्मों को लेकर सेंसर बोर्ड अतिरिक्त एक्शन मोड में रहता था।
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दो दीवाने दिल के, चले हैं देखो मिलके...
हॉलीवुड के हास्य अभिनेताओं बॉब होप और बिंग क्रॉसबी की जोड़ी की तर्ज पर आइ.एस. जौहर और महमूद की जोड़ी 'जौहर महमूद इन हांगकांग' तथा 'जौहर महमूद इन गोवा' में नजर आई। दोनों पर फिल्माया गया 'ये दो दीवाने दिल के, चले हैं देखो मिलके' अपने समय में खूब चला था। जौहर पर फिल्माए गए लोकप्रिय गीतों में 'बड़े मिया दीवाने ऐसे न बनो', 'धीरे रे चलो मोरी बांकी हिरनिया' और 'दिलदार कमंदों वाले का हर तीर जिगर से गुजरे है' भी शामिल हैं। राजेश खन्ना की 'सफर' आइ.एस. जौहर की अदाकारी के लिए भी याद की जाती है। देव आनंद की 'जॉनी मेरा नाम' में ट्रिपल किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया।
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