बॉलीवुड इंडस्ट्री ने हमें बहुत कुछ दिया है। कई बड़ें कलाकार, संगीतकार, डांसर, एक्टर और न जाने क्या-क्या।इस कड़ी में हमें बॉलीवुड ने एक ऐसे संगीतकार दिए जिन्होंने अपनी अनूठी छाप को अभी भी कायम रखा है। बॉलीवुड इंडस्ट्री ने हमें मोहम्मद रफी जैसे सिंगर से नवाजा तो आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन लोगों के दिलों औऱ दिमाग में आज भी बसते हैं।
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24 दिसंबर, 1924 को जन्मे मोहम्मद रफी जितने अच्छे फनकार थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे। रफी का जन्म अमृतसर के छोटे गांव कोटला सुल्तानपुर में हुआ था और उनका बचपन भी यही बीता था। यही वह वक्त था जब रफी अपने गांव के फकीर के साथ उसके गीतों को दोहराया करते थे। धीरे-धीरे यह सूफी फकीर उनके गाने की प्रेरणा बनता गया और वह मोहम्मद रफी से उस्ताद मोहम्मद रफी बन गए। आज मोहम्मद रफी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके किस्से आज भी लोगों के बीच जिंदा हैं। रफी को बचपन से ही पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। जिसके चलते उनके पिता ने उन्हें रफी के बड़े भाई के साथ नाई का काम सीखने के लिए भेज दिया था। दरअसल उनके भाई सलून चलाया करते थे, लेकिन इस दौरान भी रफी अपने गीत गुनगुनाया करते थे जिसे देखकर उनके भाई ने उनकी मुलाकात नौशाद अली से करवा दी। बस फिर क्या था रफी को पहला मौका ‘हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा’ की कुछ लाइनें गाने का मिला।
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इसके बाद महज 13 साल की उम्र में रफी को पहली बार एक संगीत के कार्यक्रम में गाना गाने का मौका मिला, इसमें वे अकेले नहीं थे उनके साथ महान केएल सहगल भी मौजूद थे। अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन रफी की गाड़ी चल पड़ी थी और 1948 में रफी ने राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखित ‘सुन सुनो ऐ दुनिया वालों बापूजी की अमर कहानी’ गाया। इस गाने के हिट होने के बाद उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घर में गाने के लिए आमंत्रित किया गया था। एस.डी बर्मन, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर और कल्य़ाणजी आनंदजी समेत अपने दौर के लगभग सभी लोकप्रिय संगीतकारों के साथ मोहम्मद रफी ने काम किया।
रफी साहब ने प्रेम, दुख, सुख, देशभक्ति, भजन, बालगीत लगभग हर मिजाज के गीतों को गाया। उन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रफी साहब ने हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में भी गाने गाए हैं। उनके नाम लगभग 26 हजार गीत गाने का रिकॉर्ड हैं।
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