Tuesday, February 23, 2021

बैंकों का निजीकरण: 'छूट मिलने पर सार्वजनिक बैंक भी कमा सकते हैं मुनाफा'

बसंत मौर्य

मुंबई. बजट में सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव है। सरकारी नियंत्रण वाले चार से पांच बैंकों के नाम चर्चा में हैं। बैंकों के निजीकरण की राह सरकार के लिए आसान नहीं होगी। बैंक कर्मचारी यूनियन और अधिकारी संगठन इसके लिए तैयार नहीं हैं। इनका कहना है कि निजीकरण से समस्या हल नहीं होगी। सबसे बड़ी समस्या डूबे कर्ज की वसूली है। बकाया वसूल करने की छूट मिले, तो सभी सार्वजनिक बैंक मुनाफा कमा सकते हैं।

निजीकरण मंजूर नहीं -
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन की महाराष्ट्र इकाई के सचिव नीलेश पवार ने कहा कि पब्लिक सेक्टर के किसी भी बैंक का निजीकरण हमें मंजूर नहीं है। बैंकों की हालत 2012-14 के बीच गलत फैसलों से खराब हुई है। जो बैंक कमजोर हैं, उन्हें दोबारा खड़ा होने के लिए सहारा मिलना चाहिए। बड़ा सवाल यह कि निजी बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करेंगे? ऐसे में तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीण भारत को कैसे मिलेगा।

उद्योग समूहों के पास अनुभव नहीं -
ऑल इंडिया सेंट्रल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के महासचिव मनोज वडनेरकर ने कहा कि बैंकों पर एनपीए बोझ शरीर पर लगे जख्म जैसा है, जो मरहम लगाने से ठीक हो सकता है। पीएसबी का निजीकरण जख्म वाले अंग को काट कर फेंकने जैसा है। पीएसबी देश के हर कोने में आम लोगों को बैंकिंग सेवा प्रदान करते हैं।

चुप्पी...कई बैंकों के नाम उछले -
बजट में आडीबीआइ बैंक के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के दो और बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का प्रस्ताव है। वित्त मंत्रालय की चुप्पी के बीच कई बैंकों के नाम उछले हैं। इनमें बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र के नाम शामिल हैं। बैंकों के निजीकरण के लिए कानून में संशोधन करना पड़ेगा। बैंकिंग कंपनीज एक्ट 1970 और बैंकिंग कंपनीज एक्ट 1980 में बदलाव करने होंगे। यह प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं की गई है।

बैंक खोलना चाहते हैं ये समूह-
देश के कई बड़े उद्योग समूह खुद का बैंक खोलना चाहते हैं। इनमें टाटा, रिलायंस, अडानी और आदित्य बिड़ला ग्रुप शामिल हैं। इनमें से तीन ने लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, जिसे रिजर्व बैंक ने खारिज कर दिया। निजीकरण का प्रस्ताव आगे बढ़ा, तो उक्त समूह अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। यह वह रास्ता है, जिससे अंबानी, अडानी और टाटा के खुद के बैंक का सपना साकार हो सकता है।



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