Thursday, February 25, 2021

खाने के तेल ने बिगाड़ा रसोई का बजट, जानिए कितनी बढ़ गई महंगाई

नई दिल्ली। सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी के अनुमान के बावजूद खाद्य तेल की महंगाई से उपभोक्ताओं को राहत मिलने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। खाने के तमाम तेल के दाम आसमान छू रहे हैं। तेल व तिलहनों की वैश्विक आपूर्ति कम होने के कारण कीमतों में तेजी का सिलसिला जारी है। खाद्य तेल कांप्लेक्स में सबसे सस्ता कच्चा पाम तेल का भाव बीते करीब 10 महीने में 89 फीसदी उछला है। पाम तेल के दाम में इजाफा होने से खाने के अन्य तेल के दाम में भी जोरदार उछाल आया है।

साल में इस तरह से बढ़ा खाने के तेल का भाव
देश के सबसे बड़े वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर गुरुवार को क्रूड पाम तेल (सीपीओ) का मार्च अनुबंध 1,072 रुपये प्रति 10 किलो तक उछला जोकि एक साल के निचले स्तर से 89 फीसदी तेज है। बीते एक साल के दौरान सात मई 2020 को सीपीओ का वायदा भाव एमएसीएक्स पर 567.30 रुपए प्रति 10 किलो तक टूटा था। वहीं, हाजिर में थोक भाव की बात करें तो सात मई 2020 को कांडला पोर्ट पर पामोलीन आरबीडी का थोक भाव 68 रुपए किलो था जोकि बढ़कर गुरुवार को 116 रुपए किलो हो गया। कांडला पोर्ट पर आयातित सोया तेल का भाव इस समय 118 रुपए प्रति किलो और सूर्यमुखी तेल का भाव 157 रुपए प्रति किलो है। देश में सरसों तेल का बेंचमार्क बाजार जयपुर में इस समय कच्ची घानी सरसों तेल का थोक भाव 125 रुपए प्रति किलो चल रहा है।

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इंटरनेशनल मार्केट में महंगा ऑयल
देश के खाद्य तेल उद्योग संगठनों की मानें तो अप्रैल से पहले खाने के तेल की महंगाई पर लगाम लगने के आसार कम हैं। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन दाविश जैन ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमतें काफी ऊंची हो गई हैं जिससे आयात महंगा हो गया है, लिहाजा घरेलू बाजार में भी खाने के तेल के दाम सर्वाधिक ऊंचाई पर है। उन्होंने कहा कि जब तक सरसों की नई फसल बाजार में नहीं उतरती है तब तक दाम में गिरावट के आसार कम है।

क्यों बढ़ी कीमतें
सॉल्वेंट एक्स्ट्रैटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता के अनुसार सूर्यमुखी का वैश्विक उत्पादन निचले स्तर पर है। रेपसीड का उत्पादन कम है। मलेशिया में पाम तेल का उत्पादन जितना बढऩा चाहिए उतना नहीं बढ़ा। अर्जेटीना और ब्राजील में नई फसल आने में विलंब हो गया है और भारत में भी सरसों की फसल आने में 15 से 20 दिन की देरी हो गई है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नकदी का प्रवाह बढऩे से कमोडिटी में लोग पैसा लगा रहे हैं। यह भी तेजी का एक कारक है।

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रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से एक दिन पहले बुधवार को जारी फसल वर्ष 2020-21 के दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, देश में तिलहनों का उत्पादन चालू वर्ष के दौरान 373.10 लाख टन होने का अनुमान है जिसमें सोयाबीन 137.10 लाख टन, सरसों व रेपसीड का उत्पादन रिकॉर्ड 104.3 लाख टन और मूंगफली का रिकॉर्ड 101.50 लाख टन शामिल है।

जरुरत का 60 फीसदी आयात
भारत तेल की अपनी कुल जरूरत का 60 फीसदी से ज्यादा आयात करता है। हाल ही में नीति आयोग की छठी गवर्निग काउंसिल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर चिंता जाहिर की। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भारत को सालाना करीब 65,000-70,000 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। उन्होंने खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने की अपील करते हुए कहा कि यह पैसा देश के किसानों के खाते में जा सकता है।



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