जमाना बदल गया। हिन्दी सिनेमा की कुछ रस्में नहीं बदलीं। मसलन यह रस्म कि हर सितारा पुत्र की पहली फिल्म प्रेम कहानी पर ही बनेगी। राज कपूर ने ऋषि कपूर के लिए 'बॉबी' बनाकर यह सिलसिला शुरू किया था। सनी देओल ने 'ढाई किलो के हाथ' से हैंड पम्प उखाडऩा काफी बाद में शुरू किया। उनकी पहली फिल्म 'बेताब' खालिस प्रेम कहानी थी। 'जब हम जवां होंगे, जाने कहां होंगे' मार्का रूमानी ख्यालात वाली। कुमार गौरव की 'लव स्टोरी', संजय दत्त की 'रॉकी' और बॉबी देओल की 'बरसात' में भी प्रेम के पहाड़े पढ़े गए। ज्यादातर सितारा पुत्रों की फिल्मों की कहानी कमोबेश एक-सी रही। गरीब हीरो, अमीर हीरोइन (इनके स्टेटस में अदला-बदली होती रहती थी)। दोनों के खानदान में पुरानी रंजिश, जो क्या मजाल है कि क्लाइमैक्स से पहले खत्म हो जाए। इन फिल्मों को चलाने में गीत-संगीत का बड़ा हाथ रहा।
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ये क्या आने में आना है..
सितारा पुत्र आज भी चले आ रहे हैं, लेकिन न उनकी फिल्मों के लिए सलीकेदार कहानी लिखी जा रही है, न गीत-संगीत पर ध्यान दिया जा रहा है। इसीलिए दो साल पहले सनी देओल के पुत्र करण देओल की 'पल पल दिल के पास' के साथ 'ये क्या आने में आना है' वाला मामला रहा। वही हाल इस हफ्ते आई 'ट्यूजडे एंड फ्राइडे' ( Tuesdays and Fridays Movie Review ) का है। यह पूनम ढिल्लों ( Poonam Dhillon ) के पुत्र अनमोल ठकेरिया ढिल्लों ( Anmol Thakeria Dhillon ) की पहली फिल्म है। इसकी शुरुआत में नेहा कक्कड़ ( Neha Kakkar ) ने जाने-पहचाने लटके-झटकों के साथ 'फोन में तेरी फोटो, मम्मी पूछे, बेटा कौन है/ रातभर तू सोई नहीं, तेरी किससे चैटिंग ऑन है' पेश किया, तो अंदाजा हो गया कि यह किस टाइप की फिल्म होगी। आगे जो कुछ हुआ, वह इतना बचकाना और बनावटी है कि प्रेम फिल्म से उड़कर कहीं और पनाह मांगने लगे।
प्यार में भी वकालत के नुक्ते
हीरो (अनमोल) लेखक है। लिखने-पढऩे के बजाय वह हमेशा हीरोइन (झटलेका मल्होत्रा) के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। हीरोइन वकील है। वह प्रेम में भी वकालत के नुक्ते ढूंढ लेती है। एक-दो रील बाद इनकी कहानी मुम्बई से उड़कर लंदन पहुंच जाती है। एक सीन में हीरो कहता है, 'हर रिश्ते की एक्सपायरी डेट होती है।' बड़ी दूर की कौड़ी लाए हैं फिल्म बनाने वाले। हीरोइन प्रेम का कायदा तैयार करती है। यह कि दोनों सिर्फ मंगलवार और शुक्रवार को मिलेंगे, ताकि प्रेम में ताजगी बनी रहे।
'टाइम पास आइटम' बना दिया प्रेम को
सतर के दशक में राजेश खन्ना और मुमताज की 'आपकी कसम' में एक गाना 'आज मोहब्बत बंद है' सिर्फ तीन मिनट की चुहलबाजी के लिए रखा गया था। 'ट्यूजडे एंड फ्राइडे' में यह चुहलबाजी कहानी का आधार बना दी गई। यह प्रेम की दुर्दशा की हद है। फिल्मों में मोहब्बत तिजारत (कारोबार) पहले ही बना दी गई थी। अब इसे 'टाइम पास आइटम' के तौर पर पेश किया जा रहा है। 'ट्यूजडे एंड फ्राइडे' में न हीरो का चरित्र समझ आता है, न हीरोइन का। दोनों बड़े आराम से इस करारनामे पर राजी हो जाते हैं कि मंगलवार और शुक्रवार को छोड़ हफ्ते के बाकी दिन एक-दूसरे से आजाद रहेंगे। यानी इस बीच दोनों किसी और से भी 'प्यार-व्यार का चक्कर' चला सकते हैं।
अनमोल और झटलेका भी कमजोर कड़ियां
प्रेम का मखौल उड़ाने वाली यह फिल्म शुरू से आखिर तक लडख़ड़ाती रहती है। कथा-पटकथा के साथ-साथ अनमोल और झटलेका भी फिल्म की सबसे कमजोर कड़ियां हैं। चॉकलेटी अनमोल कोई उम्मीद नहीं जगाते। पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर एक-सा भाव बना रहता है कि भाव देने वाले का भला, न देने वाले का भी भला। उन्हें पहली फुर्सत में एक्टिंग सीख लेनी चाहिए। वर्ना 'ट्यूजडे एंड फ्राइडे' जैसे भाव विहीन चेहरे से उनकी गाड़ी ज्यादा दूर जाती नहीं लगती। झटलेका ने भी कोई तीर नहीं मारा है। जो फुसफुसा किरदार उन्हें दिया गया है, उसमें ज्यादा गुंजाइश भी नहीं थी।
- दिनेश ठाकुर
० फिल्म : ट्यूजडे एंड फ्राइडे
० रेटिंग : 1.5/5
० अवधि : 1.46 घंटे
० लेखक, निर्देशक : तरणवीर सिंह
० फोटोग्राफी : इवान मुलिगम
० संगीत : टॉनी कक्कड़
० कलाकार : अनमोल ठकेरिया ढिल्लों, झटलेका मल्होत्रा, निक्की वालिया, कामिनी खन्ना, नयन शुक्ला, रीम शेख, एकलव्य कश्यप, इब्राहिम चौधरी, परवीन डबास, अनुराधा पटेल आदि
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