Wednesday, March 3, 2021

एनिमेशन फिल्म 'Bombay Rose' का डिजिटल प्रीमियर 8 मार्च को, फिर छिड़ेगी बात फूलों की

-दिनेश ठाकुर
फन और फनकार कभी बाजार से बड़ी दूर रहा करते थे। के.एल. सहगल सीना ठोककर 'बाजार से गुजरा हूं, खरीदार नहीं हूं' गाते थे। सईद राही 'मैं तो इख्लास (निश्छलता) के हाथों ही बिका करता हूं/ और होंगे तेरे बाजार में बिकने वाले' जैसे शेर रचते थे। फूल की तरह फन अपने आप खिलता था। दूर-दूर तक महकता था। खुशबू के लिए उस पर बाजार का इत्र छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ती थी। अब आलम यह है कि बाजार साथ नहीं तो कैसा फन और कैसा फनकार। क्या फूल, क्या खुशबू। मख्दूम ने फरमाया है, 'वो शराफत तो दिल के साथ गई/ लुट गई कायनात फूलों की/ कौन देता है जान फूलों पर/ कौन करता है बात फूलों की।' हर तरफ हावी बाजार के इस दौर में जब कोई फूलों की बात करता है, तो हैरानी और सुकून एक साथ करवटें लेते हैं। अभिनेत्री-फिल्मकार गीतांजलि राव ( Gitanjali Rao ) ने 'बॉम्बे रोज' ( Bombay Rose ) नाम की फिल्म बनाई है। इसका महिला दिवस ( Women's Day ) पर 8 मार्च को डिजिटल प्रीमियर होगा। यह फिल्म दो साल पहले वेनिस और टोरंटो फिल्म समारोह में सुर्खियां बटोर चुकी है। पिछले साल भारत के सिनेमाघरों में पहुंचने वाली थी। कोरोना की बिल्ली इसका रास्ता काट गई।

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मायानगरी में अलग तरह की सैर
'बॉम्बे रोज' गीतांजलि राव की पहली एनिमेशन फीचर फिल्म है। इसमें उन्होंने अपनी शॉर्ट फिल्म 'ट्रू लव स्टोरी' (2014) के किरदारों कमला और सलीम की कहानी को विस्तार दिया है। कमला बेहतर जिंदगी की तलाश में मुम्बई पहुंचती है। जल्द ही उसे यह माया समझ आ जाती है कि मुम्बई सबकी है और किसी की नहीं है। गुजर-बसर के लिए वह दिन में फूल बेचती है, रात को बार में डांस करती है। कमला की कहानी के जरिए 'बॉम्बे रोज' एक महानगर की अलग तरह से सैर कराती है। बॉलीवुड की मसाला फिल्मों की तरह यहां भी 'साथ जिएंगे, साथ मरेंगे' मार्का इश्क है, नाच-गानों का धूम-धड़ाका है, मोहब्बत का दुश्मन जमाना है, बदमाशों की हड्डी-पसली तोडऩे वाला हीरो है। फिल्म के एनिमेटेड किरदारों को सायली खरे, अनुराग कश्यप, मकरंद देशपांडे, वीरेंद्र सक्सेना और खुद गीतांजलि राव ने आवाज दी है।

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'बाल गणेश', 'छोटा भीम', 'बाल हनुमान' के कई भाग बने
भारत में एनिमेशन फिल्में कम बनती हैं। इस तर्क में दम नहीं है कि ऐसी फिल्मों को दर्शक नसीब नहीं होते। अगर ऐसा होता तो 'बाल गणेश', 'छोटा भीम' और 'बाल हनुमान' के कई भाग नहीं बनते। सलीकेदार फिल्में खुद-ब-खुद दर्शक जुटा लेती हैं। निखिल आडवाणी की 3डी एनिमेशन फिल्म 'दिल्ली सफारी' (2012) ने न सिर्फ दर्शक जुटाए, नेशनल अवॉर्ड की चार ट्रॉफियां जीतने में भी कामयाब रही। इसके पशु-पक्षी किरदारों को अक्षय खन्ना, उर्मिला मातोंडकर, बोमन ईरानी आदि ने आवाज दी थी।

भारी-भरकम बजट के बावजूद 'रोडसाइड रोमियो' फ्लॉप शो
याद आता है कि 2008 में यशराज बैनर ने हॉलीवुड कंपनी वाल्ट डिज्नी पिक्चर्स के साथ मिलकर एनिमेशन फिल्म 'रोडसाइड रोमियो' बनाई थी। इस पर पानी की तरह पैसा बहाया गया। किरदारों के लिए सैफ अली खान, करीना कपूर, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा आदि की आवाज का इस्तेमाल किया गया। निर्देशन जुगल हंसराज को सौंपा गया, जो शेखर कपूर की 'मासूम' के बाद गोया एक्टिंग करना भूल चुके हैं। सिर्फ भारी-भरकम बजट से अच्छी एनिमेशन फिल्म नहीं बनाई जा सकती, 'रोडसाइड रोमियो' इसका नमूना है। इस तरह की फिल्में तकनीक का खेल नहीं हैं। कहानी का सलीकेदार ताना-बाना होना चाहिए। सहजता और भावनाओं की भी दरकार रहती है। इनके अभाव में फिल्म उस कंकाल की तरह लगती है, जिसे किस्म-किस्म के गहने पहना दिए गए हों।



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