वेब सीरीज बनाने अनुभव नया और चैलेंजिंग रहा। इसमें चीजों को विस्तार से बताने का मौका मिलता है। आपको चीजें दर्शाने और बताने के लिए शॉर्टकट लेने की जरूरत नहीं होती इसमें। साथ ही इसमें आप हर किरदार के साथ न्याय कर सकते हो। हमारी वेब सीरीज 'आश्रम' में भी करीब 11 मुख्य किरदार हैं। इसे बनाने में काफी मजा आया। हां, पहली बार थोड़ा चैलेंजिंग रहा। शूटिंग में कोई अंतर नहीं है। वेब सीरीज हो या फिल्म दोनों की शूटिंग एक जैसी ही होती है। यह कहना है बॉलीवुड के प्रसिद्ध डायरेक्टर प्रकाश झा का। उन्होंने पत्रिका एंटरटेनमेंट के साथ खास बातचीत में अपने प्रोजेक्ट और अन्य विषयों पर विचार साझा किए।
बॉबी इस रोल के लिए परफेक्ट
इस सीरीज में बॉबी देओल ने जो किरदार निभाया है, उसमें सभी तरह के शेड्स हैं। नेगेटिव शेड के साथ थोड़ा पॉजिटिव रूप भी दिखाया गया है। इस रोल के लिए बॉबी एकदम परफेक्ट हैं। दर्शक उनको ऐसे किरदार में देखने की उम्मीद नहीं कर सकते थे। अगर मैं इस किरदार के लिए किसी ऐसे कलाकार तो चुनता जो पहले विलेन का रोल कर चुका हो तो लोग शुरुआत से ही उसके बारे में नेगेटिव सोचते।
थिएटर में फिल्म देखने का अलग मजा
सिनेमा का अनुभव बिल्कुल अलग होता है। सिनेमाहॉल में आप तैयार होकर जाते हो फिल्म देखने। अंधेरे में आपको कोई फर्क नहीं पड़ता की आपके आस—पास कितने लोग बैठे हैं। थिएटर में आप स्क्रीन से जुड़ जाते हैं। बड़े पर्दे पर फिल्म देखना और सराउंड साउंड का मजा अलग ही होता है। डिजिटल में चीजें आपके कंट्रोल में होती है। रिमोट आपके हाथ में होता है, जब मर्जी की तो रोक दिया। बाद में भी देख सकते हैं, लेकिन सिनेमाहॉल में ऐसा नहीं कर सकते।
गांवों में ओटीटी लोकप्रिय
कोरोना के कारण सिनेमाघर काफी समय से बंद हैं। ऐसे में कई बड़ी फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही हैं। ओटीटी और थिएटर में इनकी कमाई के अंतर को लेकर सवाल पर प्रकाश झा ने कहा,'अभी तो शुरुआत है। 6—8 महीनें में इस बारे में पता चलेगा। मेरा मानना है कि अगर दोनों प्लेटफॉर्म साथ—साथ चलें तो सिनेमा के लिए बेहतर होगा। ओटीटी की अलग व्यूअरशिप है। डेटा अब सस्ता है और गांवों में भी लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्में देख रहे हैं।'
सरकार सोच समझकर फैसला लेंगी
प्रकाश झा की फिल्म 'परीक्षा' हाल ही ओटीटी रिलीज हुई, जो विद्यार्थियों पर आधारित है। जेईई और नीट की परिक्षाओं को लेकर चल रहे विवाद पर उन्होंने कहा, इसमें दोनों ही तरह की बाते हैं। दूर—दराज में रहने वाले बच्चों को शहरों में बने सेंटर्स तक जाने में दिक्कत आएगी। वहां उन्हें ठहरने की भी समस्या होगी। कुछ विद्यार्थी बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर अगर परीक्षा नहीं होती है तो उन विद्यार्थियों के साथ अन्याय होगा, जो सालभर से तैयारी कर रहे हैं और परीक्षा का इंतजार कर रहे हैं। इस मामले में सरकार सोच समझकर फैसला लेगी।
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