Thursday, April 22, 2021

अस्पतालों को ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकती है कई उद्योगों को बीमार

नई दिल्ली। कोरोना की सेकंड वेव ने पूरे देश में हहाकार मचा दिया है। बीते 24 घंटे में 3.14 लाख नए केस सामने आए हैं। जो पूरी दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है। देश के सामने कई समस्याएं और भी हैं। ऑक्सीन की कमी देश के सभी अस्पतालों में हैं। जिसकी वजह से देश का 90 फीसदी ऑक्सीजन अस्पतालों को ही सप्लाई किया जा रहा है। इस फैसले के बाद से उन उद्योगों के बीमार होने का खतरा बढ़ गया है जहां पर ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है। ऑक्सीन के बिना कई कंपनियों का प्रोडक्शन या तो कम हो गया है या फिर बंद हो गया है। कुछ ने तो खुद करने का फैसला लिया है। ऐसे में क्रिसिल की एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें बताया गया है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण कौन-कौन से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।

यहां हो सकता है सबसे ज्यादा नुकसान
क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आटोमोबाइल्स, शिपब्रेकिंग, पेपर, इंजीनियरिंग और मेटल फैब्रीकेशन जैसी इंडस्ट्री से जुड़े एमएसएमई के प्रोडक्शन और रेवेन्यू पर खासा प्रभाव देखने को मिल सकता है। वैसे इस प्रभाव का असर कम समय के लिए हो सकता है। कारण बताते हुए क्रिसिल ने कहा है कि आने वाले दिनों में ऑक्सीजन की सप्लाई सामान्य हो सकती है और हालात काबू में आ सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार बाहर से ऑक्सीजन इंपोर्ट ओर काम करने के लायक बनाने में काफी समय लगता है। क्रिसिल रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर सुशांत सरोदे के अनुसार ऑक्सीजन सप्लाई नॉर्मल होने में 6 हफ्ते और लग सकते हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश के उद्योगों को ज्यादा नुकसान होने का खतरा है।

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अब स्टील इंडस्ट्री पर भी लगाई रोक
दूसरी ओर सरकार ने कुछ और उद्योगों को ऑक्सीजन के उपयोग पर रोग लगाने के आदेश दे दिए हैं। पहले स्टील इंडस्ट्रीह को छूट दी गई थी, अब उन्हें भी सप्लाई बंद कर दी गई है। जिनके पास अपने खुद के ऑक्सीजन प्लांट हैं उन्हें ही इजाजत दी गई है। मतलब साफ है कि खुले बाजार से स्टील कंपनियां ऑक्सीजन नहीं खरीद पाएंगी। सरकार के अनुसार मौजूदा समय में देश में ऑक्सीजन की प्रोडक्शन कैपेसिटी 7500 मैट्रिक टन है। जिसका 90 फीसदी इस्तेमाल मौजूदा समय में मेडिकल सेक्टर में करने को कहा गया है। क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य तौर पर घरेलू ऑक्सीजन क्षमता का 10 फीसदी ही चिकित्सा क्षेत्र में होता रहा है।



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