नई दिल्ली। राजस्थान का सियासी संकट ( Rajasthan political crisis ) अब कानूनी दांव पेंच ( Judicial tricks ) में बदल गया है। इस मामले में कांग्रेस के कद्दावर नेता सचिन पायलट ( Sachin Pilot ) मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( CM Ashok Gehlot ) पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। इस संकट पर अभी कोई निर्णय नहीं आया है, लेकिन सीएम गहलोत की बेचैनी से साफ है कि मसला अदालती दांव-पेंच में उलझने के बाद से वो काफी परेशान हैं।
फिर इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उस पर अदालत में सवाल उठाकर वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ( Senior Advocate Mukul Rohatgi ) ने उनकी परेशानी को बढ़ा दी है।
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दरअसल, राजस्थान उच्च न्यायालय ( Rajasthan High Court ) ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर सुनवाई के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 विधायकों की विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ( Assembly Speaker CP Joshi ) द्वारा जारी किए गए नोटिस के खिलाफ याचिका को बहस के लिए स्वीकार कर लिया। साथ ही अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष को यथास्थिति बरकरार ( maintain Status quo ) रखने का निर्देश दिया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने राजस्थान के सियासी संकट ( Political Crisis ) पर पहले ही उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर सुनवाई कर रहा है। इसी बीच पायलट और बागी विधायकों की तरफ से अदालत में पक्ष रख रहे वकील मुकुल रोहतगी ने अपने क्लाइंट का पक्ष रखा है।
पार्टी नेता के खिलाफ बोलना विधायकी छीनने का आधार नहीं हो सकता
राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बारे में शीर्ष अदालत के सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण आदेश है। यदि कोई विधायक, मुख्यमंत्री या पार्टी के किसी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ अपनी आवाज उठाता है और उसके पास इसके तार्किक आधार ( Logical base ) हैं और इसे नहीं सुना जा रहा है तो क्या इस कृत्य के लिए उस विधायक को अयोग्य ठहराया जा सकता है, जिसके लिए वह 5 साल के लिए चुनकर आया है?
मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत को बताया कि यदि सचिन पायलट ( Sachin Pilot ) विपक्ष की रैली में शामिल होते या सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते तो यह स्पष्ट संकेत होता कि वो पार्टी छोड़ना चाहते हैं। लेकिन पार्टी के अंदर रहकर एक विधायक का अपने नेता के खिलाफ बोलना उसे अयोग्य ठहराए जाने का आधार नहीं हो सकता है।
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गलत धारणा को सही नहीं माना जा सकता
इसके बाद शीर्ष अदालत ने जब रोहतगी से पूछा कि बागियों द्वारा केंद्र को पक्षकार बनाना क्या इस बात को संकेत नहीं है कि वे बीजेपी ( BJP ) के साथ हैं तो उन्होंने कहा कि यह गलत धारणा है। जब भी कानून या संविधान के प्रावधान को चुनौती दी जाती है, तो यह पक्षकार पर निर्भर करता है कि वह भारत सरकार ( Government of India ) को शामिल करती है या नहीं क्योंकि भारत सरकार को अपने कानूनों और संविधान का बचाव करना होता है।
राज्यपाल सरकार सुझाव मानने के लिए बाध्य नहीं
शु्क्रवार को राजस्थान में जारी सियासी संकट और विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर राज्यपाल ( Governor )के अधिकारों पर भी बहस हुई। इस दौरान सवाल यह उठा कि क्या सरकार के कहने पर राज्यपाल विधानसभा का सत्र ( Vidhansabha session ) बुलाने के लिए बाध्य हैं। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि राज्यपाल एक संवैधानिक व्यक्ति हैं। वे केवल मुख्यमंत्री की बात मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।
गहलोत को जल्दबाजी किस बात की है?
राज्यपाल कोरोना वायरस ( Coronavirus ) की स्थिति को देखते हुए अगले दो सप्ताह तक विधानसभा सत्र को रोक सकते हैं। खास बात यह है कि राज्य में विपक्ष बहुमत परीक्षण की मांग नहीं कर रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद विधानसभा सत्र आहूत करना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें 10-20 दिन का इंतजार करना चाहिए। उन्हें जल्दी क्या है? वे अपने लिए बहुमत साबित करना चाहते हैं। फिर उनका दावा है कि बहुमत से 25 विधायक उनके पास ज्यादा है। ऐसे में उन्हें जल्दबाजी किस बात की है?
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