Wednesday, December 2, 2020

MDH Owner Death : एक छोटे से खोखे से शुरुआत करने वाले धर्मपाल गुलाटी जानें कैसे बनें 'मसाला किंग'

नई दिल्ली। अपने उम्दा मसालों से खाने का जायका बढ़ाने वाले MDH ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी को भला कौन नहीं जानता। आंखों में चश्मा और सिर पर पगड़ी सजाने वाले धर्मपाल के बनाए मसाले अब भारतीय घरों की जान बन चुके हैं। दिल्ली में एक छोटे से खोखे से मसाले बेचने की शुरुआत करने वाले जल्द ही मसाला किंग बन गए। उनकी मेहनत और लगन के चलते कंपनी ने कई बुलंदियों को हासिल किया। आज उसी मसाला सम्राट ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने 98 साल की उम्र में सुबह करीब 5.38 बजे अपनी आखिरी सांसें लीं। उनकी मौत हार्ट अटैक के चलते हुई है।

मालूम हो कि धर्मपाल गुलाटी को कुछ समय पहले कोरोना हो गया था। हालांकि बाद में वे स्वस्थ हो गए, लेकिन बढ़ती उम्र के चलते उनकी तबियत थोड़ी नासाज़ थी। लिहाजा दिल का दौरा पड़ने की वजह से आज उनका देहांत हो गया। उनके पार्थिव शरीर को जनकपुरी से वसंत विहार घर ले जाया जाएगा। यहीं उनके करीबी और जानने वाले उनहें अंतिम विदाई देंगे। आज हम आपको उनके सफरनामे से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएंगे।

महज 5वीं तक पढ़े हैं धर्मपाल
मसाला सम्राट महाशय धर्मपाल गलाटी भले ही आज देश का एक पॉपुलर नाम है, लेकिन क्या आपको पता है उन्होंने महज 5वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। दरअसल 27 मार्च, 1923 को सियालकोट (जो अब पाकिस्तान में है) में जन्में धर्मपाल को पढ़ाई—लिखाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थीं। उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही स्कूल छोड़ दिया था। इसके बाद वे अपने पिता के साथ मिलकर काम करने लगे। उन्होंने साबुन, बढ़ई, कपड़ा, हार्डवेयर, चावल का व्यापार किया। बाद में वे अपने पिता की 'महेशियां दी हट्टी' के नाम की दुकान में काम करते थे।

गुजारे के लिए चलाते थे तांगा
महाशय धर्मपाल गुलाटी शुरू से कुछ अलग करना चाहते थे। इसी के चलते वे दिल्ली आ गए थे। मगर यहां आकर पैसा कमाना और गुजारा करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। चूंकि उनकी जेब में पिता से मिले महज 1500 रुपए ही बचे थे। ऐसे में उन्होंने 650 रुपए में एक घोड़ा और तांगा खरीदा और इसके दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर चलाने लगे। इसी के जरिए वे शुरुआती दौर में अपनी आजीविका चलाते थे।

छोटे से खोखे से पड़ी नींव
दिल्ली में रहने और खुद का खर्चा उठाने के लिए धर्मपाल भले ही तांगा चलाते थे, लेकिन इस काम के लिए उनका दिल साथ नहीं देता था। लिहाजा उन्होंने तांगा अपने भाई को दे दिया और खुद करोलबाग की अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सा खोखा लगा लिया। इसमें वे मसाले बेचा करते थे। उनकी पहचान सियालकोट की देगी मिर्च से पड़ी। लोगों को इसका जायका काफी पसंद आता था। धीरे—धीरे उनका बिजनेस चल पड़ा और 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी नाम से शुरू किया गया उनका कारोबारा दिल्ली में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी।

परिवार ने साथ मिलकर बनाया ब्रांड
दिल्ली के करोलबाग में स्थित दुकान को अब एक बड़े प्लेटफॉर्म में तब्दीलक करने के लिए धर्मपाल का साथ उनके परिवारवालों ने दिया। उन्होंने एक छोटी पूंजी इंवेस्ट करके दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में दुकानें खरीदीं। साथ ही गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई। यहां से एमडीएच मसाला उद्योग का एक जाना—पहचाना नाम बन गया।



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