कोरोना महामारी से आम जीवन तो त्रस्त हुआ ही इससे उद्योग जगत को भी काफी नुकसान हुआ। विकास निर्माण के कार्य थम से गए थे। हालांकि, इस दौरान भी भारत ने आत्मनिर्भरता पर जोर देना बंद नहीं किया चाहे वो मेडिकल के सेक्टर में हो या उद्योग जगत में। इसी क्रम में सेमी कंडक्टर के मामले में भारत चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने में जुट गया है। भारतीय समूह वेदांता और ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी फॉक्सकॉन मिलकर गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट स्थापित करने जा रहे हैं। इसके लिए दोनों के बीच एक MoU पर भी हस्ताक्षर किये हैं। पर क्या आपको पता है पहले ये प्लांट महाराष्ट्र में स्थापित होने वाला था। इसको लेकर महाराष्ट्र की सियासत में बुधवार को घमासान भी देखने को मिला।
विपक्षी दलों ने शिंदे सरकार पर निशाना साधा और सवाल किया कि आखिर महाराष्ट्र से डील लगभग तय होने के बाद तो यह गुजरात केसै चला गया? हालांकि, इस मुद्दे पर राजनीति होना लाजमी है क्योंकि इसे राज्य के आर्थिक विकास के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। अब इस मुद्दे पर वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का बयान सामने आया है।
क्या कहा वेदांता ग्रुप के चेयरमैन ने?
जब मीडिया द्वारा उनसे महाराष्ट्र की बजाय गुजरात चुनने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ये उनके हाथ में नहीं था। प्रोजेक्ट के लिए फंड ऋण के माध्यम से जुटाया जाएगा और कंपनी की अभी तक इक्विटी हिस्सेदारी बेचने की कोई योजना नहीं है।
क्यों सेमीकन्डक्टर प्लांट के लिए महाराष्ट्र की बजाय गुजरात चुना गया?
इस सवाल पर मीडिया से बातचीत में वेदान्त ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा, 'ये एक प्रोफेशनल निर्णय था जोकि Foxconn के टॉप अधिकारियों ने लिया। इसके लिए के टीम का गठन किया गया था जिसमें एक एकाउंटेंसी फर्म और एक विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों ने 5-6 राज्यों का दौरा किया। हर राज्य ने उनका बाहें फैला कर स्वागत किया और जो भी आवश्यकता थी उसे पूरा करने का आश्वासन दिया।"
वेदान्त ग्रुप के चेयरमैन ने कहा, "गुजरात को चुने जाने के निर्णय में मेरी भूमिका नहीं थी। हमारे पास अधिक समय नहीं था और हमें इसपर तेजी से आगे बढ़ना था। हम आखिरी फैसला लेने के लिए और दो महीने का इंतजार नहीं कर सकते थे। हमनें कहा कि अब इसपर पूर्ण विराम लगाते हैं। टीम ने जिसे फाइनल किया है और जो भी तय किया है हम उसी के साथ आगे बढ़ेंगे।"
बता दें कि इस प्रोजेक्ट में कुल 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा जोकि अर्थव्यवस्था और नौकरियों को बढ़ावा देने में कारगर साबित होगा। इससे भारत में चिप निर्माण को बूस्ट मिलेगा और चीन पर भी उसकी निर्भरता कम होगी।
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