केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कई प्रकार की योजनाएं चल रखी है। उनकी आदमी बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश जारी है। किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए किसानों कई तरह से लाभ पहुंचाया जा रहा है। इसी कड़ी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ग्रामीण आय को बढ़ावा देने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) धारकों को ऋण का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित करने का आग्रह किया। अब किसानों को पहले आसान और कम ब्याज दरों को कर्ज मिल सकेगा। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होने की संभावना है।
केसीसी योजना की समीक्षा
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सीईओ के साथ कई घंटों लंबी चली बैठक के दौरान, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को प्रौद्योगिकी सुधार में मदद करने के लिए भी कहा। बैठक के बाद मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि वित्त मंत्री ने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना की समीक्षा की और चर्चा की कि इस खंड को संस्थागत ऋण कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है।
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कृषि ऋण में ग्रामीण बैंक की अहम भूमिका
वित्त राज्य मंत्री भागवत के कराड ने कहा कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर एक अन्य सत्र में यह निर्णय लिया गया। इसके बैंक को डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी सुधार में उनकी मदद करनी चाहिए। बैठक की अध्यक्षता वित्त मंत्री ने की और मछली पकड़ने और डेयरी क्षेत्र में लगे सभी लोगों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने पर चर्चा की गई। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कृषि ऋण में महत्वपूर्ण भूमिका है।
एक तिहाई बैंक को धन की जरूरत
बता दें की मौजुदा समय में केंद्र की आरआरबी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि 35 प्रतिशत और 15 प्रतिशत क्रमशः संबंधित प्रायोजक बैंकों और राज्य सरकारों के पास हैं। सूत्रों ने कहा कि 43 आरआरबी में से लगभग एक तिहाई, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी और पूर्वी क्षेत्रों से, घाटे में हैं। बताया जा रहा है कि उन्हें 9 प्रतिशत की नियामक पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत है।
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छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को मिलता है कर्ज
ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से आरआरबी अधिनियम, 1976 के तहत इन बैंकों का गठन किया गया था। अधिनियम 2015 में संशोधित किया गया था, जिसके तहत ऐसे बैंकों को केंद्र, राज्यों और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई थी।
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