नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर 'राजनीतिक विरोधियों और सिविल सोसायटी के सदस्यों को निशाना बनाने' को लेकर हमला किया है। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चौराहे पर आ गया है, क्योंकि 'असंतोष को आतंकवाद या ब्रांडेड राष्ट्र-विरोधी गतिविधि के रूप में देखा जाने लगा है'। एक अखबार में प्रकाशित और बाद में कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी किए गए एक लेख में उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है।
सोनिया गांधी ने कहा, "लेकिन सबसे खराब बात यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के सभी स्तंभ निशाने पर हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को दमन और धमकी के माध्यम से व्यवस्थित रूप से खत्म कर दिया गया है। असहमति को जानबूझकर 'आतंकवाद' या 'राष्ट्र-विरोधी गतिविधि' के रूप में ब्रांडेड किया जा रहा है।"
विपक्षी नेता ने कहा कि भारतीय सरकार ने हर जगह 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के खतरे का बहाना बनाकर लोगों का ध्यान 'वास्तविक समस्याओं' से हटा दिया है। उन्होंने आगे कहा, "बेशक इन खतरों में से कुछ वास्तविक हैं और उनसे निपटा जाना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा जब भी देखती है कि कोई राजनीतिक विरोध हो रहा है, तो वह उसे भयावह साजिश कहने लगती है।"
सोनिया ने कहा कि मीडिया और ऑनलाइन ट्रोल फैक्ट्री के माध्यम से सिस्टम असंतुष्ट लोगों के पीछे जांच एजेंसियों को लगा देती है। उन्होंने लिखा, "कड़ी मेहनत से हासिल किए गए भारत के लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है।"
कांग्रेस नेता ने यह कहते हुए मोदी सरकार पर हमला किया कि "राज्य के प्रत्येक अंग जो संभवत: राजनीतिक विरोध को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), और यहां तक कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को पहले से ही दबा दिया गया है।"
उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों को भारत देश के दुश्मन के रूप में प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने कहा, "इस सेल्फ-सविंर्ग कदम ने भाजपा और उसकी राजनीति से सार्वजनिक रूप से असहमत किसी भी व्यक्ति और प्रदर्शनकारी के खिलाफ हमारे दंड संहिता में सबसे कठोर कानून के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। यह साल 2016 में भारत के सबसे अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में युवा छात्र नेताओं के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों के साथ शुरू हुआ। उन्होंने इस क्रम को कई मामलों के साथ प्रसिद्ध कार्यकतार्ओं, विद्वानों और बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी के साथ जारी रखा है।" गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को सीएए विरोधी आंदोलन को 'संगठित हिंसा' बताया था, जिसके बाद सोनिया गांधी ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का बचाव किया।
उन्होंने कहा, "भाजपा विरोधी प्रदर्शनों को भारत विरोधी षड्यंत्रों के रूप में पेश करने का सबसे निंदनीय प्रयास को मोदी सरकार द्वारा सीएए और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (सीएए-एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में देखा गया। मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व वाले सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शन ने दिखाया कि कैसे एक वास्तविक सामाजिक आंदोलन सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण राजनीति का जवाब शांति, समावेशी और एकजुटता के मजबूत संदेश के साथ दे सकता है।"
सोनिया गांधी ने कहा कि दिल्ली के शाहीन बाग और देश भर के अन्य अनगिनत स्थलों पर हुए विरोध प्रदर्शनों में यह देखा गया कि महिलाओं के लिए प्रमुख मंच को सुरक्षित करते हुए कैसे पुरुष सत्ता को सहायक भूमिका निभाने के लिए राजी किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "यह प्रदर्शन, संविधान और प्रस्तावना, राष्ट्रीय ध्वज और हमारे स्वतंत्रता संग्राम सहित राष्ट्रीय प्रतीकों के अपने गौरवपूर्ण उपयोग के लिए भी उल्लेखनीय था।"
उन्होंने आगे कहा, "इस आंदोलन को राजनीतिक स्पेक्ट्रम में सिविल सोसायटी के कार्यकतार्ओं और संगठनों का व्यापक समर्थन मिला और उन्होंने भी विभाजनकारी सीएए-एनआरसी का विरोध किया। लेकिन मोदी सरकार ने इस आंदोलन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।"
विपक्षी दल की नेता ने आगे कहा, "इसके बजाय उन्होंने इसे कमजोर करना चुना और इसे दिल्ली के चुनाव में विभाजनकारी मुद्दा बना दिया। एक गांधीवादी सत्याग्रह के लिए वित्त राज्य मंत्री और गृह मंत्री सहित भाजपा के नेताओं ने हमले के लिए अपमानजनक बयानबाजी और हिंसक बयान का इस्तेमाल किया। दिल्ली भाजपा के अन्य नेताओं ने सार्वजनिक रूप से प्रदर्शनकारियों पर हमला करने की धमकी दी। सत्तारूढ़ पार्टी ने ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया, जिससे पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़की। फरवरी में होने वाले ये दंगे कभी नहीं होते अगर सरकार ने उन्हें रोकने की कोशिश की होती।"
मोदी सरकार पर अपना हमला जारी रखते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि कई महीनों तक केंद्र ने अपने प्रतिशोध को आगे बढ़ाते हुए यह दावा किया कि विरोध प्रदर्शन भारत के खिलाफ एक साजिश थी। उन्होंने कहा, "परिणाम स्वरूप मामले में करीब 700 प्राथमिकी दर्ज की गई, सैकड़ों से पूछताछ की गई और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्जनों को हिरासत में लेकर पक्षपाती जांच की गई।"
उन्होंने आगे कहा, "भाजपा के असंतुष्ट और सिविल सोसायटी के कार्यकतार्ओं के साथ मतभेद हो सकते हैं। यहां तक कि उन्हीं कार्यकतार्ओं ने अक्सर कांग्रेस सरकारों के खिलाफ भी विरोध किया है। लेकिन उन्हें सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले राष्ट्र-विरोधी षड्यंत्रकारियों के रूप में पेश करना लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।"
कांग्रेस नेता ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि प्रख्यात अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों, सामाजिक प्रचारकों और यहां तक कि बहुत वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं, जिनमें एक पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल हैं, उन्हें दिल्ली पुलिस जांच में तथाकथित खुलासे को लेकर निशाना बनाया गया। उन्होंने कहा, "यह इस बात को दर्शाता है कि भाजपा परिणामों की परवाह किए बिना, अपनी सत्तावादी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए ²ढ़ निश्चित है।"
उन्होंने हाथरस कांड का भी उल्लेख किया और कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की 'दलित लड़की के साथ दुष्कर्म, गैरकानूनी दाह संस्कार और न्याय मांग रहे पीडि़त परिवार के विरोध' को लेकर असहिष्णु और अलोकतांत्रिक मानसिकता किसी से छिपी नहीं रही। उन्होंने आगे कहा, "यूपीए सरकार ने निर्भया मामले को कैसे संभाला उसे देखते हुए उप्र सरकार की प्रतिक्रिया एकदम उलट थी।" उन्होंने कहा, "हमारे संविधान और स्वतंत्रता आंदोलन द्वारा कल्पित यह राष्ट्र तभी पनपेगा जब लोकतंत्र और इसकी भावना का पालन किया जाएगा।"
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