Saturday, February 5, 2022

आर्किटेक्ट बनना चाहते थे रतन टाटा, जानिए इनकी संघर्ष से सफलता तक की दास्तां

हमारे देश में एक से एक बिजनेस टाइकून हैं और रत्न टाटा भी इनमें से एक है। रतन टाटा न केवल एक व्यवसायी हैं, बल्कि एक उद्योगपति, निवेशक, परोपकारी और कंपनी TATA Sons के पूर्व अध्यक्ष भी हैं। वो वर्ष 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे हैं। रतन टाटा की सफलता की कहानी कबीले तारीफ है परंतु वो इस ऊंचाई तक एक दिन में नहीं पहुंचे बल्कि उन्हें कई वर्ष लगे। कई बार उन्हें असफलता का सामना भी करना पड़ा है। एक बार तो फोर्ड कंपनी के मालिक बिल फोर्ड ने उन्हें अपमानित भी किया था। इसके बाद उन्होंने फोर्ड से जगुआर और लैंड रोवर खरीदकर अपने अपमान का बदल लिया था।

बचपन से ही बनना चाहते थे आर्किटेक्ट


रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था, परंतु आपको ये बात पता है कि रतन टाटा बचपन से ही आर्किटेक्ट बनना चाहते थे। रतन टाटा के पिता नवल टाटा चाहते थे कि वो इंजीनियर बने और उन्होंने अपने पिता की इच्छा का मान भी रखा। उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए एक बार कहा था, "मैं हमेशा एक आर्किटेक्ट बनना चाहता था क्योंकि यह मानवतावाद की गहरी समझ प्रदान करता है। साथ ही, आर्किटेक्ट प्रफेशन ने मुझे प्रेरित किया है और उस क्षेत्र में मेरी गहरी रुचि थी। लेकिन मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक इंजीनियर बनूं और मैंने इंजीनियरिंग में दो साल बिताए।"

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आर्किटेक्ट होने का पछतावा नहीं


उन्होंने आगे बताया था कि "इंजीनियरिंग के दौरान मुझे समझ आया कि मुझे एक आर्किटेक्ट बनना चाहिए जहां मेरी दिलचस्पी वास्तव में थी।"

रतन टाटा ने बताया कि "मैंने अपना बाकी का जीवन आर्किटेक्ट के बाहर बिताया। मुझे एक आर्किटेक्ट होने का कभी पछतावा नहीं हुआ। मुझे केवल इस बात का अफसोस है कि मैं काफी लंबे समय तक ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं था।"

एक आम कर्मचारी की तरह शुरू किया था काम


रतन टाटा ने टाटा स्टील के रिटेल स्टोर पर एक दुकानदार की तरह ही शुरुआत की थी। 70 के दशक के दौरान उन्हें Nelco और Empress Mills जैसी कंपनियों का प्रभार दिया गया था। तो, आप कह सकते हैं कि रतन टाटा की सफलता की कहानी टाटा समूह के किसी अन्य कर्मचारियों की तरह ही शुरू हुई थी।

रतन टाटा 1962 में टाटा समूह में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर लाइमस्टोन को हटाने और भट्टी को हैंडल करने का काम किया। इसके बाद 3 वर्षों तक कई पोस्ट पर रहे और कंपनी को अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद में 1991 में समूह के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने दिसंबर 2012 तक समूह का नेतृत्व किया।

जब बने थे कंपनी के अध्यक्ष हुआ था विरोध


उनका अध्यक्ष पद को संभालना भी इतना आसान नहीं था। जब 1991 में जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तब उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा था। उस समय कई कंपनियों के प्रमुखों ने इस निर्णय का विरोध किया। ये वो लोग थे जो कई वर्षों से टाटा से जुड़े थे और काफी प्रभावी भी थे।

इसके बाद रतन टाटा ने सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित की और उन्हें बदलना शुरू कर दिया। उन्होंने सभी कर्मचारियों से कहा कि वे टाटा समूह को बनाने और उसे एक अलग स्तर पर ले जाने के लिए कुछ न कुछ योगदान दें। इस दौरान उन्होंने कई नयी कंपनियों को टाटा ग्रुप से जोड़ा। ये वो कंपनियां थीं जिनहीँ टाटा ग्रुप के ब्रांड का इस्तेमाल कर मिलने वाले लाभ को टाटा ग्रुप के साथ शेयर करना था।

रतन टाटा की सफलता की कहानी टाटा समूह के अध्यक्ष रहकर 21 वर्षों तक सफलतापूर्वक जारी रही। इस अवधि के दौरान, कंपनी का राजस्व कई गुना बढ़ा, और 50 गुना से अधिक का लाभ अर्जित किया।

टाटा कंपनी को वैश्विक स्तर पर दिलाई पहचान


रतन टाटा ने टाटा टेलीसर्विसेज की शुरुआत की और भारत की पहली स्वदेशी विकसित कार इंडिका कार भी डिजाइन की और लॉन्च भी। इसके बाद वर्ष 2004 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) लोगों लेकर सामने आया। वर्ष 2008 में उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो कार को लॉन्च किया। रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप को वैश्विक पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने एंग्लो-डच स्टीलमेकर कोरस और ब्रिटिश लक्जरी कार ब्रांड Jaguar Land Rover और ब्रिटिश चाय कंपनी Tetley का अधिग्रहण भी किया।

पद्म सम्मान


रतन टाटा ने 21 वर्षों में टाटा ग्रुप की आमदनी को 40 गुना बढ़ाया है। रात टाटा को उनकीं उपलब्धियों के लिए उन्हें कई बाद सम्मानिर भी किया गया है। उन्हें भारत के दो सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार - पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया है।



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